हे राजन! अब तुम यह पशुओंकी-सी अविवेकमूलक धारणा छोड़ दो कि मैं मरूंगा; जैसे शरीर पहले नहीं था और अब पैदा हुआ और फिर नष्ट हो जाएगा,वैसे ही तुम भी पहले नहीं थे,तुम्हारा जन्म हुआ, तुम मर जाओगे-- यह बात नहीं है।2.
जैसे बीजसे अंकुर और अंकुरसे बीज की उत्पत्ति होती है,
वैसे ही एक देहसे दूसरे देहकी और दूसरे देह से तीसरे देह की उत्पत्ति होती है।
किंतु तुम न तो किसीसे उत्पन्न हुए हो और न तो आगे पुत्र-पौत्र आदिको के शरीरकेरूप में उत्पन्न होओगे।
अजी!जैसे आग लकड़ीसे सर्वथा अलग रहती है --लकड़ीकी उत्पत्ति और विनाशसे सर्वथा परे, वैसेही तुमभी शरीरआदिसे सर्वथा अलग हो।3.