Wednesday 9 February 2022

5th chapter

श्री शुकदेव जी कहते हैं--प्रिय परीक्षित! श्रीमद्भाभागवत महापुराणमें बार-बार और सर्वत्र विश्वात्मा भगवान श्रीहरिका ही संकीर्तन हुआहै। ब्रह्माऔर रुद्रभी श्रीहरिसे पृथक नहीं है,उन्हींकी प्रसाद- लीला और क्रोध-लीला की अभिव्यक्ति है। 1.

 हे राजन! अब तुम यह पशुओंकी-सी अविवेकमूलक धारणा छोड़ दो कि मैं मरूंगा; जैसे शरीर पहले नहीं था और अब पैदा हुआ और फिर नष्ट हो जाएगा,वैसे ही तुम भी पहले नहीं थे,तुम्हारा जन्म हुआ, तुम मर जाओगे-- यह बात नहीं है।2.

जैसे बीजसे अंकुर और अंकुरसे बीज की उत्पत्ति होती है,
वैसे ही एक देहसे दूसरे देहकी  और दूसरे देह से तीसरे देह की उत्पत्ति होती है। 
किंतु तुम न तो किसीसे उत्पन्न हुए हो और न तो आगे पुत्र-पौत्र आदिको के शरीरकेरूप में उत्पन्न होओगे। 
अजी!जैसे आग लकड़ीसे सर्वथा अलग रहती है --लकड़ीकी उत्पत्ति और विनाशसे सर्वथा परे, वैसेही तुमभी शरीरआदिसे सर्वथा अलग हो।3.

स्वप्नावस्थामें ऐसा मालूम होता है कि मेरा सिर कट गया है और मैं मर गया हूं, मुझे लोग श्मशानमें जला रहे हैं; परंतु यह सब शरीर की ही अवस्थाएं दीखती है,आत्मा  की नहीं। देखने वाला तो उन अवस्थाओंसे सर्वथापरे,जन्मऔर मृत्युसे रहित, शुद्ध-बुद्ध परमतत्वस्वरूप है।4.

5th chapter

श्री शुकदेव जी कहते हैं-- प्रिय परीक्षित! श्रीमद्भाभागवत महापुराणमें बार-बार और सर्वत्र विश्वात्मा भगवान श्रीहरिका ही संकीर्तन ह...