मारकंडे जी का माया दर्शन
Wednesday 2 June 2021
6. ॐ
जिस समय परमेष्ठी ब्रह्मा जी पूर्व सृष्टि का ज्ञान संपादन करने के लिए एकाग्र चित्त हुए,उस समय उनके हृदय_ आकाश_से, कंठ_तालु आदि स्थानों के संघर्ष से रहित,एक *अत्यंत विलक्षण अनाहत नाद*प्रकट हुआ। जब जीव अपनी *मनोवृत्ति यों को रोक लेता है तब* उसे भी उस अनाहत नाद का अनुभव होता है।37
बड़े-बड़े योगी उसी अनाहत नाद की उपासना करते हैं और उसके प्रभाव से अंतःकरण के द्रव्य (अधिभूत) क्रिया (अध्यात्म) और कारक (अधिदेव)रूप मल को नष्ट करके वह परम गति रूप मोक्षको प्राप्त करते हैं,जिसमें जन्म मृत्यु रूप संसार चक्र नहीं है।38।
उसी अनाहत नाद से "अ" कार "उ "कार और "म"कार रूप3 मात्राओं से युक्त ओंकार प्रकट हुआ ।इस ओंकार की शक्ति से ही प्रकृति अव्यक्त से व्यक्त रूप में परिणत हो जाती है ।ओंकार स्वयं भी अव्यक्त एवं अनादि है और परमआत्मस्वरूप होने के कारण स्वयं प्रकाश भी है। जिस परम वस्तु को भगवान, ब्रह्म अथवा परमात्मा के नाम से कहा जाता है, उसके स्वरूप का बोध भी ओंकार के द्वारा ही होता है। 39
जब श्रवण इंद्रिय की शक्ति लुप्त हो जाती है तब भी इस ओंकार को,_(समस्त अर्थों को प्रकाशित करने वाले _स्फोटतत्व को) जो सुनता है और सुषुप्ति एवं समाधि_ अवस्थाओं में सब के अभाव को भी जानता है ,वही परमात्मा का विशुद्ध स्वरूप है।वही ओंकार परमात्मा से ह्रदयआकाश में प्रकट होकर वेद रूपा वाणी को अभिव्यक्त करता है।40
ओंकार अपने आश्रय परमात्मा परब्रह्म का साक्षात वाचक है और ओमकार ही संपूर्ण मंत्र, उपनिषद और वेदों का सनातन बीज है। 41
ओंकार के तीन वर्ण है_"अ"," उ", "म"और यही तीनों वर्ण सत्व रज और तम_ इन तीन गुणों;ऋक, यजु:, साम_इन तीन नामों; भू:, भुव:, स्व: इन तीन अर्थों। और जाग्रत, स्वप्न सुषुप्ति_इन तीन वृत्तियों के रूप में 3_3 की संख्या वाले भावों को धारण करते हैं।42
अध्याय 13
विभिन्न पुराणों की श्लोकसंख्या और श्रीमद्भागवत की महिमा
यह श्रीमद् भागवत भगवत तत्वज्ञान का एक श्रेष्ठ प्रकाशक है। इसकी तुलना में और कोई भी पुराण नहीं है।
1.इसे पहले पहल स्वयं भगवान नारायण ने ब्रह्मा जी के लिए प्रकट किया था।
2. फिर उन्होंने ही ब्रह्मा जी के रूप से देवर्षि नारद को उपदेश किया था।
3. और नारद जी के रूप से भगवान श्री कृष्ण द्वैपायन व्यास को।
4. तदनंतर उन्होंने ही व्यास रूप से योगेंद्र सुखदेव जी को
5. और श्री सुखदेव जी के रूप से अत्यंत करुणा वर्ष राजर्षि परीक्षित को देश किया।
6. श्री सुखदेव जी से गुरु जी को प्राप्त हुआ।
7. गुरुजी से मुझे प्राप्त हुआ।
8. वे भगवान परम शुद्ध एवं माया मलसे जल रहित है। शोक और मृत्यु उनके पास तक नहीं फटक सकते। हम उन्हीं परम सत्य स्वरूप परमेश्वर का ध्यान करते हैं। 19.
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5th chapter
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